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ॐ मातर्म्मे मधुकैटभघ्नि महिष प्राणापहारोद्यमे
हेलानिर्म्मित धूम्रलोचनवधे हे चण्डमुण्डार्द्दिनि
निश्शेषीकृत रक्तबीजदनुजे नित्ये निशुंभापहे
शुंभध्वंसिनि संहराशु दुरितं दुर्ग्गे नमस्तेंबिके